How to Know your Karma ? कैसे जाने आपका कर्म क्या है । Hindi
कैसे जाने आपका कर्म क्या है ।
युध्द भी होता रहे,
लगता रहे दरबार भी ।
रणभेदी बजती रहे,
पायल की जनकार भी ।
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यह पकि्तंया मैने टीवि पर सूनी थी अच्छी लगी तो यहां उपयोग कर रहा हुँ ,
लिखने वाले (unknown) ने बहुत अच्छा लिखा है । मेरा ध्नयावाद ।
तन-मन-विचार-कर्म ।
तन , मन और विचार के बिना कर्म नही हो सकता ।
और मन जुडा है शरीर से ।
जैसा मन वैसा तन । और तन जुडा है अन से ।
जैसा अन वैसा तन ।
उपर लिखी बातो से यह कह सकते है कि कर्म के साथ सीध्धे
कुछ नही कर सकते तो फिर क्या उपाए होगा जिस से
हम अपने कर्म को पहचान सके और जान सके ।
कर्म का विज्ञान
पहले हमे कर्म के विज्ञान के संम्बधं
मे जानना होगा ।
कर्म कैसे कार्य मे बदल जाता है। या कर्म कैसे धटित होता है ।
हमारे पास जो है हम वही दे सकते है ,
जो हमारे पास नही है वो हम कैसे दे सकते है ।
जो एक इन्सान संसार से या मे ईक्ठा करता है वो वही तो दे सकता है ।
इन्सान ये सभ इक्ठा कैसे करता है ।
उपभोग से - सूंध के, सुन के, देख के, सर्पष से या खा के।
इन्ही चीजो से शरीर , मन , विचार फिर कर्म का निर्माण होता है ।
कर्म अच्छा या बूरा कैसे ।
नया पोस्ट से जाने कर्म अच्छा या बूरा कैसे ।
जैसी संगत वैसी रंगत
कर्म कैसे अच्छा होता है और कैसे बुरा
उपर लिंक से पड सकते है ।
कर्म को समझने के लिए इसे दो भागो मे समझते है
पहला - बाहरी कर्म - जो संसारी भी कहा जा सकता है ।
संसार मे रहने के लिए जीवन जरुरी है । और जीवन के लिए
जीने के साधन जैसे धन, धर नौकरी, वाहन आदि वस्तुयो की
जरुरत तो पडेगी ही ।
यह वस्तुए धन से ही मलेगी, धन के लिए नौकरी , व्यापार और
कुछ तो करना पडेगा । उसे छोड नही सकते , वो तो जरुरी कर्म है ।
फिर प्रश्न ये उठता है कि मेरा कर्म क्या है ।
दूसरा - भीतरी कर्म - जो आप कर नही सकते पर , भीतर खोज
सकते है जो निर्णतर चल ही रहा है , आप का ध्यान भीतर कम
बाहर ज्यादा होने से , उस पर आप ने कभी गौर नही किया ।
एक धारा जो सतत , लगातार मनुष्या के भीतर चलती है
कभी खो जाती है , कभी स्वय ही आ जाती है ।
ध्यान और योग के निर्णतर अभ्यास से अनुभव की जा सकती है ।
आजकल की भाषा मे कहे तो , Wifi चल रहा है
बर्माण्ड का आप ने कभी Connect ही नही किया,
या अपने शरीर रुपी
Device को Tune नही किया , इसलिए Automaticaly
Connect नही हो रहा ।
होश, जो मनुष्या के भीतर चलता है सजगता का, मनुष्या से
उपर उठने का भगवत्ता की ओर, जैसे -जैसे यह कर्म धारा,
का प्रवाह भीतर से बाहर की ओर बढता है तो बाहरी कर्म पर
प्रभाव डालना शुरु करता है ।
जीससे आप का निर्णया, सकंल्प , कार्य क्षमता निर्णतर बडती
जाती है ,
आप का कर्म निखर के आपके सामने आने लगता है ।
आप को क्या करना है क्या नही, किसी से पुछने नही जाना
पडता ।
आप से निकला हुआ कार्या एक अदभुत उदाहरण बन जाता है
भीतर से कर्म के प्रति सजगता से किया गया कार्या सदा
मनमोहन कार्या विख्यात होता है ।
ध्नयावाद ।
ध्यान का महत्वपूर्ण सुत्र , Meditation Keys
Rohnish Astrology
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